खास बातें
- तीन तलाक अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है.
- मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका है.
- तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बहुमत के फैसले में मंगलवार को कहा कि तीन तलाक अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है. तीन तलाक की घटनाओं के कालक्रम इस प्रकार है ( 16 अक्तूबर 2015) उच्चतम न्यायालय की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार से संबधित एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश से उचित पीठ का गठन करने के लिए कहा ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं.
पांच फरवरी 2016 : उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत की मदद करने के लिए कहा.
28 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने ‘महिलाओं और कानून : शादी, तलाक, संरक्षण, वारिस और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पारिवारिक कानूनों के आकलन’ पर उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट दायर करने के लिए केंद्र से कहा. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत विभिन्न संगठनों को पक्षकार बनाया.
29 जून : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम समाज में ‘तीन तलाक’ को ‘संवैधानिक रूपरेखा की कसौटी’ पर परखा जाएगा.
7 अक्तूबर : भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में इन प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे आधार पर इस पर विचार करने का अनुरोध किया.
14 फरवरी 2017 : उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न याचिकाओं पर मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने की अनुमति दी.
16 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी और फैसला देगी.
27 मार्च : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि ये मुद्दे न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार के बाहर है इसलिए ये याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं.
30 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये मुद्दे ‘बहुत महत्वपूर्ण’ हैं और इनमें ‘भावनाएं’ जुड़ी हुई है और संविधान पीठ 11 मई से इन पर सुनवाई शुरू करेगी.
11 मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म का मूल सिद्धान्त है.
12 मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक की प्रथा मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका है.
15 मई : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर तीन तलाक खत्म हो जाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक के लिए नया कानून लेकर आएगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह देखेगा कि क्या तीन तलाक धर्म का मुख्य हिस्सा है.
16 मई : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आस्था के मामले संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखे जा सकते. उसने कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला है. तीन तलाक के मुद्दे को इस आस्था के बराबर बताया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था.
17 मई : उच्चतम न्यायालय ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या एक महिला को ‘निकाहनामा’ के समय तीन तलाक को ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है.
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह ‘अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक’ का मामला है बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच ‘अंतर सामुदायिक संघर्ष’ का मामला है.
18 मई : उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित रखा.
22 मई : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वह दूल्हों को यह बताने के लिए ‘काज़ियों’ को एक परामर्श जारी करेगा कि वे अपनी शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक का रास्ता ना अपनाए.
एआईएलपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में विवाहित दंपतियों के लिए दिशा निर्देश रखे. इनमें तीन तलाक देने वाले मुस्लिमों का ‘सामाजिक बहिष्कार’ करना और वैवाहिक विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करना भी शामिल था.
sourse https://khabar.ndtv.com/news/india/teen-talaq-case-chronology-of-events-1740493
– वहीं, वकील सैफ महमूद के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि पर्सनल लॉ से जुड़े मुद्दों को न तो कोई संवैधानिक अदालत छू सकती है और न ही उसकी संवैधानिकता को वह जांच-परख सकती है। वहीं, जस्टिस नरीमन ने कहा कि तीन तलाक 1934 के कानून का हिस्सा है। उसकी संवैधानिकता को जांचा जा सकता है। तीन तलाक असंवैधानिक है।
– फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो (38) वो पहली महिला बनीं, जिन्होंने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह (polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था।
– शायरा ने DainikBhaskar.com से कहा, ”जजमेंट का स्वागत और समर्थन करती हूं। मुस्लिम महिलाओं के लिए बहुत ऐतिहासिक दिन है। कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय को बेहतर दिशा दे दी है। अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। समाज आसानी से इसे स्वीकार नहीं करेगा। अभी लड़ाई बाकी है। इस फैसले से मुस्लिम समाज की महिलाओं को प्रताड़ना, शोषण और दुखों से आजादी मिलेगी। पुरुषों को महिलाओं के हालात को देखते हुए इसे स्वीकार करना चाहिए।”
– मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा- इस मसले पर कानून लाने की जरूरत नहीं है। बोर्ड अपने कानून के हिसाब से चलता है। बोर्ड अब 10 सितंबर को भोपाल में बैठक कर आगे की रणनीति तय करेगा।
– इससे पहले बोर्ड ने माना था कि वह सभी काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें।
– वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन्स पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेसिडेंट शाइस्ता अंबर ने तीन तलाक को गैर-कानूनी करार देते सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की है।
– लॉ एक्सपर्ट संदीप शर्मा ने DainikBhaskar.com को बताया- ”मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की जरूरत है। शायरा बानो ने जो मुद्दा उठाया है, वह अहम है। तीन तलाक के मौजूदा प्रावधान में बदलाव होना ही चाहिए। पाकिस्तान, बांग्लादेश और यूएई जैसे देशों में तीन तलाक कानून बदल चुका है, फिर हमारे यहां क्यों नहीं? कॉमन सिविल कोड बाद की बात है, पहले पर्सनल लॉ में बदलाव तो हो। एक-एक कर बदलाव किए जा सकते हैं।”
– ”पहले हिंदुओं में भी बहुविवाह प्रथा थी। 1956 में कानून में बदलाव कर हिंदू विवाह कानून के तहत एक विवाह का नियम बनाया गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी अगर बदलाव की जरूरत है तो होनी चाहिए। महिलाएं चाहें किसी भी धर्म की हों, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराना संवैधानिक जिम्मेदारी है। संविधान समानता की बात करता है और अगर पर्सनल लॉ इसमें आड़े आता है तो उसे भी बदला जा सकता है। शादी चाहे किसी भी तरीके से हो, उसके बाद की स्थिति, तलाक और गुजारा भत्ता का मामला एक समान होना चाहिए।”
– चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अपने फैसला में कहा कि तलाक-ए-बिद्दत सुन्नी कम्युनिटी का हिस्सा है। यह 1000 साल से कायम है। तलाक-ए-बिद्दत संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 का वॉयलेशन नहीं करता।
– तलाक-ए-बिद्दत यानी एक ही बार में तीन बार तलाक कह देना। ऐसा तलाकनामा लिखकर किया जा सकता है या फिर फोन से या टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी किया जा सकता है। इसके बाद अगर पुरुष को यह लगता है कि उसने जल्दबाजी में ऐसा किया, तब भी तलाक को पलटा नहीं जा सकता। तलाकशुदा जोड़ा फिर हलाला के बाद ही शादी कर सकता है।
– ट्रिपल तलाक यानी पति तीन बार ‘तलाक’ लफ्ज बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ सकता है। निकाह हलाला यानी पहले शौहर के पास लौटने के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रॉसेस। इसके तहत महिला को अपने पहले पति के पास लौटने से पहले किसी और से शादी करनी होती है और उसे तलाक देना होता है।
– सेपरेशन के वक्त को इद्दत कहते हैं। बहुविवाह यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखना। कई मामले ऐसे भी आए, जिसमें पति ने वॉट्सऐप या मैसेज भेजकर पत्नी को तीन तलाक दे दिया।
– मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 पिटीशन्स दायर की गई थीं। इनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी थीं। इनमें दावा किया गया कि तीन तलाक अनकॉन्स्टिट्यूशनल है।
– देश में मुस्लिमों की आबादी 17 करोड़ है। इनमें करीब आधी यानी 8.3 करोड़ महिलाएं हैं।
– 2011 के सेंसस पर एनजीओ ‘इंडियास्पेंड’ के एनालिसिस के मुताबिक, भारत में अगर एक मुस्लिम तलाकशुदा पुरुष है तो तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या 4 है। भारत में तलाकशुदा महिलाओं में 68% हिंदू और 23.3% मुस्लिम हैं।
केंद्र: इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के ह्यूमन राइट्स से जुड़ा मुद्दा बताता है। ट्रिपल तलाक का सख्त विरोध करता है।
पर्सनल लॉ बाेर्ड: इसे शरीयत के मुताबिक बताते हुए कहता है कि मजहबी मामलों से अदालतों को दूर रहना चाहिए।
जमीयत-ए-इस्लामी हिंद: ये भी मजहबी मामलों में सरकार और कोर्ट की दखलन्दाजी का विरोध करता है। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है।
मुस्लिम स्कॉलर्स: इनका कहना है कि कुरान में एक बार में तीन तलाक कहने का जिक्र नहीं है।
– बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। इस बेंच की खासियत यह थी कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल थे।